माँ का चेहरा

अभी कल की ही बात है आयुष का अख़बार में नाम छपा था, अपने ज़िले में दसवीं कक्षा में टॉप किया था उसने। बारहवीं में भी अच्छे अंक पाकर देश के प्रतिष्ठित इंजीनियरिंग संस्थान आई.आई. टी दिल्ली में दाखिला हुआ था। भगवान बुरी नज़र से बचाये, माँ उसकी बलायें लेती न थकती थी। आखिर वह दिन भी आ गया जब उसे दिल्ली के लिए रवाना होना था। माँ का रो रोकर बुरा हाल था और साथ ही चिंता ..दिल्ली जैसे बड़े शहर में ..कहीं कुछ अनहोनी न घट जाए । माँ ने बस एक ही बात कही थी “बेटा! कुछ भी हो एक बार इस माँ का चेहरा ज़रूर याद कर लेना।” आयुष छोटे ज़िले से था,यहाँ अधिकतर बच्चे बड़े शहरों से आये थे ,फर्राटेदार अंग्रेज़ी बोलते थे, हाई फाई गैजेट्स रखते थे। वह अकेला और चुप चुप रहता ,किसी से ज़्यादा बात न करता। फिर एक दिन उसके रूम मेट तरंग ने उसे शाम को क्लब चलने का ऑफर दिया। उसने भी सोचा यदि इन लोगों के साथ रहना है तो इनके जैसा बनना होगा। पर यह क्या क्लब के नाम पर धुआँ ही धुआँ था,कौन कहाँ पड़ा था किसी को होश न था, संगीत के शोर में कुछ बदन हवा में थिरक रहे थे तभी तरंग ने उसकी ओर सिगरेट बढ़ाई और बड़े बेतकल्लुफ होकर कहा ,”कम ऑन।” आयुष ने सिगरेट हाथ में ले ली और जैसे ही होठों तक लेकर आया,उसे माँ का चेहरा याद हो आया। तरंग ने पूछा क्या हुआ ? आयुष ने कहा, “कुछ नहीं दोस्त माँ याद आ गई ,मैं चलता हूँ ।”

 

  • तरुणा पुण्डीर ‘तरुनिल’

साकेत ,नई दिल्ली।

Related posts

Leave a Comment